Dost

दौर था वो कुछ ओर ही जब यारों की टोली इक्कठा होती थी,
वक़्त था सबके पास कुछ ज्यादा और बातें उसे भी ज्यादा थी,
पर वक़्त की करवट किसको है भाई,
कुछ यादों में, कुछ तस्वीरों में तो कुछ आंसूओं में रह गए और हम सभी को उन गलियारों में ढुंढते ढुंढते थक गए।

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